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श्वेत-श्याम चक्र जीवन का
इस धरा पर सिर्फ मनुष्य की ही सहज वृत्ति है कि वो वर्तमान एवम् भविष्य की चिंता में व्यथित रहता है।वो ये भूल जाता है कि इस सृष्टि को रचने वाला एवम् निर्वाह करने वाला कोई और है। हम जरा से दुःख में दुखी और जरा से सुख से आह्लादित हो उठते है।निराशा हमें घेर लेती है और परिणाम हमें डराने लगते है,अभाव हमें खलने लगता है और हम अपनी स्वाभाविक ख़ुशी अनायास ही खो देते है जबकि उतार-चढ़ाव, उन्नति-अवनति, यश-अपयश, अच्छा-बुरा सब जीवन चक्र का हिस्सा है। हर रात के बाद सुबह का आना सुनिश्चित है, कुछ ऐसे ही भावों के साथ हम इस कविता को आप सभी को समर्पित कर रहे है कि परेशानियों में भी खुश रहिये और अभावो में भी आनंदित……………………………………………… डॉ.वीरेन्द्र कुमर पाल
क्यों अवसाद, उनीदीं आंखे, गहन अमावस छाई है
जीवन पथ की यही कहानी, कहीं शिखर कहीं खाई है
अगर बसंत चहकता आता,नवकोपल की अँगड़ाई है
पतझड़ का भी दौर यहाँ, जहाँ हर आशा मुरझाई है
क्यों अवसाद, उनीदीं आंखे, गहन अमावस छाई है
जीवन पथ की यही कहानी, कहीं शिखर कहीं खाई है
यही प्रस्फुटित जीवन किसलय,खिल जाते है फूल अनेक
मधुर-मधुर पग धरता बचपन,छाता यौवन काल विशेष
चिर-यौवन ना रहा कभी भी, चिर बचपन न रह पाया
कहाँ किलकता, खिलता बचपन, कहाँ जीर्ण-जर्जर काया
धीरे – धीरे श्याम बदरिया, जीवन की घिर जाती है
क्यों अवसाद, उनीदीं आंखे, गहन अमावस छाई है
जीवन पथ की यही कहानी, कहीं शिखर कहीं खाई है
कभी विहंसता पूरा चंदा, कभी नहीं बचता अवशेष
कभी शिखर पर सूरज चमके, कभी अंधेरों का परिवेष
कभी जेठ की गरम दुपहरी, चहु दिश आग लगाती है
रिमझिम बादल कभी बरसते,तृप्त धरा मुस्काती है
घूमे चक्र श्वेत-श्यामल का, प्रगति-अगति की खाई है
क्यों अवसाद, उनीदीं आंखे, गहन अमावस छाई है
जीवन पथ की यही कहानी, कहीं शिखर कहीं खाई है
शूलों का हो साथ और फूलों का जी भरकर मुस्काना
काँटों को अवसाद न कोई, यों कर्तव्यों में रम जाना
खारी लहरों का मस्ती में, झूम–झूम यों लहराना
और रेत के निश्छल तट का, हर लहरों पर यों मिट जाना
जीवन जीने के दर्शन की, ये गहन-विरल परछाई है
क्यों अवसाद, उनीदीं आंखे, गहन अमावस छाई है
जीवन पथ की यही कहानी, कहीं शिखर कहीं खाई है
जीवन आशा, घोर पिपासा, इसका कोई छोर नहीं
सब कुछ पा लेने हित, लेकिन, मिट जाना कोई तोड़ नहीं
मंगल बीच अमंगल, अमंगल में मंगल को पा लेना
मरुस्थलों के बीच मरु-उद्यानों का यों लहरा लेना
निपट अंधेरी रातो में, जुगनू ने ज्योति जगाई है
क्यों अवसाद, उनीदीं आंखे, गहन अमावस छाई है
जीवन पथ की यही कहानी, कहीं शिखर कहीं खाई है
‘महाकाल’ न छीन सकेगा, तेरे हिस्से का कोई ‘काल’
तेरी पाई, तेरी होगी, मत कर घुट- घुट हाल-बेहाल
रीता आया खाली जाना, गीता का अद्भुत सन्देश
मिट्टी में मिट्टी बन जाना, न रह जाये कुछ अवशेष
हंस ले, प्यार बहा ले, बस सच्ची, अनमोल कमाई है
क्यों अवसाद, उनीदीं आंखे, गहन अमावस छाई है
जीवन पथ की यही कहानी, कहीं शिखर कहीं खाई है।
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